सन्दीप पाण्डेय का जीवन परिचय Sandeep Pandey Biography In Hindi

Sandeep Pandey Biography In Hindi

सन्दीप पाण्डेय का जीवन परिचय (Sandeep Pandey Biography In Hindi Language)

Sandeep Pandey Biography In Hindi

नाम : सन्दीप पाण्डेय
जन्म : 22 जुलाई 1965
जन्मस्थान : बलिया (उत्तर प्रदेश)
उपलब्धियां : मैग्सेसे पुरस्कार (2002)

देश के सबसे कम उम्र के मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सन्दीप पाण्डे देश के उपेक्षित तथा हाशिए पर जी रहे लोगों की दशा देखकर इतना द्रवित हुए कि उन्होंने उस वर्ग की बेहतरी के लिए काम करने का निर्णय ले लिया । अपने इस इरादे को पूरा करने के लिए उन्होंने ‘आशा परिवार’ नाम की एक संस्था खड़ी की तथा उसके माध्यम से देश के दलितों और अल्पसंख्यकों की पक्षधरता के लिए काम करने लगे | इन्होंने अपनी संस्था तथा अपने दल के साथ पूरे जोर-शोर से अपना कायर्क्रम लागू करना शुरू किया और उसके लिए देशव्यापी जागरूकता अभियान चलाया । देश की दशा में सुधार लाने वाले इस कायर्क्रम के लिए, उन्हें वर्ष 2002 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया ।

सन्दीप पाण्डेय का जीवन परिचय (Sandeep Pandey Biography In Hindi)

सन्दीप पाण्डेय का जन्म 22 जुलाई 1965 को उत्तर प्रदेश के बलिया के एक सम्पन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था । स्थानीय स्कूलों से बुनियादी शिक्षा पाने के बाद वह बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (BHU) के छात्र रहे । उसके बाद वह कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले से मेकैनिकल इन्जीनियरिंग में पी.एच.डी. की डिग्री लेने चले गए । वहां इनकी मुलाकात दीपक गुप्ता तथा वी.ज.पी. श्रीवास्तव से हुई, जो विदेश में रहते हुए भी देश के प्रति सचेत थे । उनके साथ उनके मन में विचार जागा कि विदेश में बसे भारतीयों से धन जुटाकर भारत में गरीब बच्चों की शिक्षा की दिशा में कुछ ठोस काम किया जा सकता है ।

1991 में सन्दीप कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी से पी.एच.डी. लेकर भारत लौटे और आई.आई.टी. कानपुर में प्राध्यापक बन गए । वहीं उन्होंने एक जैसी सोच वाले दोस्तों के साथ मिलकर ‘आशा परिवार’ नाम की संस्था का गठन किया । इस संस्था के पीछे सन्दीप का यह विचार था कि वह एकदम गरीब, उपेक्षित तथा तिरस्कृत लोगों के काम आएँगे, जिन तक लोकतन्त्र का लाभ नहीं पहुँच पा रहा है ।

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‘आशा परिवार’ के जरिये सन्दीप पाण्डेय की नजर देश के प्रशासन तथा उसकी राजनैतिक व्यवस्था से भ्रष्टाचार हटाने, उसकी दक्षता बढ़ाने का प्रयास करने तथा उसे अधिक जिम्मेदार बनाने को मजबूर करने जैसे कामों पर रही है । सन्दीप देश के गरीब, बदहाल लोगों को उनके जानकारी पाने के अधिकार से अवगत कराना चाहते हैं । वह उनमें यह आत्मविश्वास पैदा करना चाहते हैं कि वह खुद अपने हक के लिए खड़े हो सकें । ‘आशा परिवार’ संस्था सन्दीप के इस लक्ष्य को पूरा करने की ओर काम कर रही है । सन्दीप के सामने यह स्पष्ट है कि उनका यह लक्ष्य इस वर्ग की शिक्षा की जरूरत से जुड़ा हुआ है । और उनकी कोशिश इस दिशा में भरपूर रही है ।

‘आशा परिवार’ की नींव सन्दीप पाण्डेय के मन में बलिया में पहुँच कर पड़ी, जहाँ उन्होंने, दलितों तथा अन्य नीच कही जाने वाली जाति के लोगों को बदहाली में देखा । वे लोग गरीबी से जूझ रहे थे । वे समाज से बहिष्कृत लोग थे तथा एक तरह से तिरस्कृत जीवन जी रहे थे । सन्दीप ने उनके गाँव रेवती और मौसाहा में ‘आशा परिवार’ के स्थानीय स्वयं सेवकों को इकट्ठा कर के इनके लिए स्कूलों की व्यवस्था की, और इस कोशिश की शुरुआत की, कि ये लोग अपने भीतर आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्भरता का भाव उपजा सकें । सन्दीप ने यह लक्ष्य बनाया कि ये लोग न्यायपूर्ण तथा समतामूलक समाज की कीमत समझ सकें । सन्दीप का यह मानना था कि ‘आशा परिवार’ स्वयंसेवियों का वह पहला आश्रम है, जो बेसहारा गरीबों के लिए काम कर रहा है ।

बलिया के रेवती तथा साहा गाँवों के बाद सन्दीप ने आशा परिवार का अगला विस्तार हरदोई में दलितों के गाँव लालपुर में किया । यहाँ पर ये लोग एक अलग ही तरह के पाठ्‌यक्रम पर चल रहे हैं । ये लोग ऐसे गीत, तथा कहानियाँ सुन, पढ़ तथा गा रहे हैं जो सन्दीप के लक्ष्य को उजागर करते हैं ।

यह ‘आशा परिवार’ आश्रम शिक्षा तथा जागरूकता के अतिरिक्त और भी जिम्मेदारियाँ निभाता है, जैसे इसकी ओर से बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएँ दी जाती हैं । इसके माध्यम से सन्दीप ने वहाँ साफ-सफाई के प्रति जागरूकता की भी जानकारी लोगों के बीच सामान्य अभ्यास की तरह रखी । उन्हें उसके पालन का महत्त्व बताया तथा इन्हें आदत में ढालने का अभियान चलाया ।

‘आशा परिवार’ ने रहन-सहन के नए ढंग को तकनीकी सोच के जरिये विकसित किया, जिसमें कम खर्च पर बेहतर जिन्दगी, और रख-रखाव का नजरिया सामने आया । सन्दीप ने पूरे परिवेश में जात-पांत का भेदभाव खत्म करने के कदम उठाए । आशा परिवार के स्वयं सेवियों ने जानबूझकर उच्च जाति के लोगों द्वारा रचे गए आडम्बर और नियम तोड़े और दलितों को यह विश्वास देना शुरू किया कि उनका स्थान देश, समाज की मुख्य धारा में हैं, न कि हाशिए पर । सन्दीप पाण्डे ने दलितों तथा नीच कही जाने वाली जातियों को सबल करने के लिए उनके विरुद्ध हो रहे अत्याचारों तथा उनसे ली गई या माँगी गई घूस के मामलों को अखबारों में प्रकाशित कराया जिससे इस वर्ग में भी जागरूकता आई तथा व्यवस्था को भी एहसास हुआ कि इनके साथ अन्यायपूर्वक पेश आना कठिन होता जा रहा है ।

सन्दीप पाण्डेय की चेतना केवल दलितों तथा गरीबों तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने अपनी गतिविधि दूसरे क्षेत्रों में भी दिखाई । मई 1999 में पोखरण आणविक परीक्षण के बाद सन्दीप ने ऐसे परीक्षणों के विरुद्ध एक हजार किलोमीटर लंबी पदयात्रा निकाली, जो परीक्षण केन्द्र पोखरण से लेकर बौद्ध ज्ञान क्षेत्र सारनाथ तक गई । इस यात्रा को ‘ग्लोबल पीस मार्च’ का नाम दिया गया । सन्दीप की यह यात्रा आणविक परीक्षणों के विरोध में तथा जनहित में की गई थी ।

इसी तरह सन्दीप पाण्डेय का सरोकार, पाकिस्तान के साथ बेहतर सम्बन्ध बनाने पर भी रहा । पोखरण की ही तरह, सन्दीप ने 2005 में एक पद यात्रा अभियान भारत पाक सम्बन्ध सुधारने के उद्देश्य से भी चलाया । यह यात्रा दिल्ली से मुल्तान तक की गई थीं और इसे एकदम बुनियादी स्तर पर की गई एक महत्त्वपूर्ण शुरुआत के रूप में पहचाना गया ।

‘आशा परिवार’ के साथ-साथ, सन्दीप पाण्डेय एक संस्था ‘नेशनल अलाएंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट्‌स’ (NAPM) का भी संचालन करते हैं । यह देश की एकदम गरीब तथा तिरस्कृत लोगों की ओर उनकी गतिविधियों की सबसे बड़ी संस्था है । इस संस्था के कुछ महत्त्वपूर्ण कामों में, ‘मछुआरा मंच’ के संस्थापक राम कोचर को दिया गया सहयोग है, जिसमें इस मंच ने जातीयता के विरुद्ध कुछ मुद्दे उठाए थे । इसी तरह सन्दीप की यह संस्था गटोड आदिवासी लोगों के लिए काम कर रही दयाबाई (मूल नाम मर्सीमैथ्यू) को भी सहयोग देती है । मदुराई की क्रिश्चियन इन्टीट्यूट फार द स्टडी ऑफ रिलिजन एण्ड सोसाइटी को भी सन्दीप पाण्डेय का सहयोग मिला हुआ है । ये संस्थाएँ, आदिवासी तथा अन्य अल्पसंख्यकों पर केन्द्रित काम करती हैं ।

सन्दीप पाण्डेय के निर्भीक तथा दृढ़ व्यक्तित्व को इस घटना से समझा जा सकता है कि, जब उन्हें मैग्सेसे पुरस्कार दिया जा रहा था, तब पुरस्कार मिलने के बाद, अपने अभिभाषण में उन्होंने कहा कि, ‘दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी राष्ट्र अमेरिका है ।’

उनके इस वक्तव्य पर फिलीपींस के अखबार तथा मीडिया ने जब आपत्ति की तब इन्होंने अपनी पुरस्कार राशि वापस कर दी ।

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सन्दीप पाण्डे अपने दृढ़ चरित्र तथा तेज काम करने के ढंग के कारण बहुत से विवादों से घिर जाते हैं लेकिन वह किसी की परवाह नहीं करते । वह खद्दर पहनते हैं तथा गाँधीवादी व्यक्ति हैं । आलोचना उन्हें विचलित नहीं करती और वह किसी भी गलत कदम की आलोचना व विरोध करने से चूकते नहीं । सन्दीप पाण्डेय, अभी भी अपनी पत्नी अरुंधती धुरू के साथ लखनऊ में रहते हुए, अपने अभियान में लगे हुए हैं ।

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