शंख चिकित्सा से डायबिटीज़ रोग का इलाज

दुर्लभ ग्रंथ सुश्रुत, चरक संहिता, शंख संहिता के आधार पर यह मधुमेह रोग कोई नया रोग नहीं है, बल्कि वैदिक काल से चली आ रही यह एक खतरनाक किस्म की घातक बीमारी है. आदि पूज्य मोदक प्रिय देव श्रीगणेश भी इससे बच नहीं पाए थे.

पार्वती के पति भगवान श्री शंकर आर्यावर्त के सम्राट राजा रघु और दिलीप, स्वामी विवेकानंद, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, जवाहर लाल नेहरू इत्यादि महापुरुष भी मधुमेह रोगी रह चुके हैं. किंतु उन्होंने यम, नियम, आसन, योग, प्राणायाम द्वारा खान पान में संयम आयुर्वेदीय जड़ी बूटियों एवं सिद्ध रसायनों द्वारा इस जानलेवा रोग से मुक्ति पाई थी. अन्य कैंसर, एड्स, हार्टअटैक, उच्च रक्तचाप की तरह मधुमेह भी भयानक घातक, असाध्य एवं जानलेवा रोग है.

एक बार व्यक्ति इसके चंगुल में फंस जाए तो सारी जिंदगी इससे मुक्ति नहीं पा सकता और अत्यंत ही दुख दायक जीवनयापन करता है. उसका स्वयं का जीवन उसके लिए बोझ बन जाता है. यह रोग वर्षों तक मनुष्य को तंग करता है. यह शरीर में अंदर अनेक रोगों को जन्म देता है. इसकी वजह से गुर्दा, हृदय, आंखें, और महिलाओं में बच्चेदानी के रोग भी होते हैं. ऐसी स्थिति में इसकी चिकित्सा भी सुगम नहीं है. मृत्यु का कारण बन जाता है.

मेडिकल साइंस के पास एक खतरनाक रोग का कोई इलाज नहीं है. डायबिटीज एक असाध्य रोग हैं, जिसका नियंत्रण करना ही एक मात्र उपचार है.

चरक संहिता में ऋषि ने मधुमेह (डायबिटीज) को राजरोग बताया है और सुश्रुत संहिता में कहा है कि इस रोग का दवाओ से कोई उपचार नहीं होगा, किंतु प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग से संभव है | वर्षों के रिसर्च से शंख थैरेपी की खोज की, जो बिना दवा का सफल उपचार है. इससे घर पर ही करें अपना स्वयं इलाज मधुमेह को जड़ से खत्म किया जा सकता है.

प्रथम दिन से लाभ और 15 दिन में दवाओं व इंसुलिन इंजेक्शन से छुटकारा पाया जा सकता है. यह भ्रम नहीं मन में रखें कि डायबिटीज का इलाज नहीं है।

रोग में रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है तथा शरीर में एक विशिष्ट इंसुलिन नामक हार्मोन की कमी के कारण मानव शरीर शर्करा को रोकने में असक्षम हो जाता है, जिससे बढ़ी शर्करा मूत्र मार्ग से प्रवाहित होने लगती है हाल ही में कई अध्ययनों से पता चला है कि यदि शरीर में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रण कर मधुमेह को सामान्य स्तर पर लाया जा सकता है किंतु यह आसान नहीं है योग के बल पर मुक्ति पाई जा सकती हैं.

मधुमेह रोग क्या है?

जैसे कि इसके नाम से ही ज्ञात होता है – मधु अर्थात शहद मीठा, मेह यानी मूत्र त्याग अर्थात जिसमें मूत्र मधु शहद के समान मीठा, गाढ़ा व गंदला सा आने लगे तो उस रोग को मधुमेह कहते हैं. आज के वैज्ञानिक इसे डायबिटीज भी कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ है, शरीर से शक्कर एवं द्रव का बाहर जाना।

पुराने जमाने में आज कल की तरह जांच की प्रयोगशालाएं एवं उपकरण नहीं थे. रोगी के मूत्र पर चीटियां लगने से इस रोग का अनुमान लगाया जाता था. मधुमेह रोग में मूत्रगत शर्करा के साथ रक्त में भी शर्करा होना अनिवार्य है. शरीर पर मक्खियों के भिनभिनाने से उस जमाने में शरीरगत शर्करा का अनुभव ही इस रोग का प्रमुख लक्षण माना जाता था. पेशाब में चीनी आना (शक्कर आना) आदि रुप में भी इसे जाना जाता है.

यदि गंभीरता से विचार किया जाए तो मधुमेह के मधु (शब्द) का बहुत व्यापक एवं गूढ रहस्यपूर्ण अर्थ होता है. जैसा कि हम जानते हैं, मधु सार भाग का घोतक होता है. फूलों के सार परागकण द्रव को चूस कर मधुमक्खी या भौंरे मधु शहद का निर्माण करते हैं.

आयुर्वेद ग्रंथों में ऐसा उल्लेख है कि जिस प्रकार भ्रमरों के द्वारा पुष्पों से मधु का निर्माण होता है ठीक उसी प्रकार शरीर में स्थित रस रक्त मांस हड्डी मज्जा और विर्य के सार भाग ओज नामक तत्व का निर्माण होता है. ओज भी मधु के समान गाढ़ा एवं रस वाला होता है. मधुमेह में यह मूत्र के साथ बाहर निकलता रहता है, जिसके कारण व्यक्ति दुर्बल होने लगता है। शरीर में इम्युनिटी पावर रोग प्रतिरोधक शक्ति खत्म होने लगती है, जिसके कारण कई आंतरिक रोग आक्रमण कर देते हैं शरीर खोखला होकर मृत्यु का कारण बन जाता है.

वैसे यह रोग हजारों वर्षों से मानव को मौत का शिकार बनाता आ रहा है और आज संपूर्ण विश्व में बड़ी तेजी के साथ फैल रहा है. सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि विश्व में सवाधिक मधुमेह के रोगी हमारे देश में ही है.

एक आंकड़े के अनुसार चार करोड़ व्यक्ति इस रोग से ग्रस्त है समय के साथ साथ प्रतिवर्ष रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है, हंसी की बात यह है कि कई लोगों को तो इसका ध्यान ही नहीं है, कि वे इस रोग के शिकंजे में फंस चुके है. कभी खून की जांच करायी जाती है, तब पता चलता है कि वह इस रोग से पीड़ित हैं.

इस तरह से मधुमेह आज यमराज की तरह संपूर्ण विश्व में मानव जाति में द्रुत गति से माया जाल फैलाता हुआ अचानक मौत का तांडव नृत्य कर रहा है. आज यह रोग चिकित्सा वैज्ञानिकों के लिए खुली चुनौती बना हुआ है.

अस्थाई मधुमेह की उत्पत्ति में व्यक्ति की मानसिक स्थिति भी प्रमुख से भाग लेती हैं. होता यह है कि मानसिक तनाव, बहुत समय से भोगने वाले मनःक्लेश अशांति, क्रोध, शोक, क्षोभ, ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा भय, चिंता इत्यादि मन की व्यथित दशाओं में अधिवृक्क ग्रंथि इत्यादि में विक्षेप पैदा होता है, जिसके कारण अल्प मात्रा में क्षण भर के लिए मूत्र में शर्करा आने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और अस्थाई मधुमेह उत्पन्न हो जाता है, जो उपयुक्त विकारों से दूर होकर मानसिक शांति उपलब्ध होने पर स्वयंमेव मूत्र शर्करा रहित हो जाता है अर्थात मधुमेह मिट जाता है.

किंतु यदि मानसिक तनाव एवं भय, चिंता, वहम, विरह वेदना स्नायु तंत्र की दुर्बलता तथा मानसिक श्रम की स्थिति लगातार व लंबे समय तक बनी रहती है. तो पिट्यूटरी के अग्र भाग के अन्तःस्त्राव हार्मोन की अधिकता से इंसुलिन का कम मात्रा में उत्पादन होता है, जिसके परिणाम स्वरुप मधुमेह रोग उत्पन्न हो जाता है.

इतना ही नहीं थायरॉइड ग्रंथि के हार्मोन की भी अधिक मात्रा में उत्पत्ति होती है, जिससे समस्त कोशिकाओं की क्रियाशीलता बढ़ जाती है और उस अनुपात में इंसुलिन की पूर्ति नहीं होने पर रक्त में शर्करा की अधिकता हो जाती है. परिणाम यह होता है कि मधुमेह स्थाई रूप से आक्रमण करता है.

यही कारण है कि अधिक मानसिक काम करने वाले उच्च पदाधिकारी व चिंतन मननशील, तनावपूर्ण जीवन यापन करने वाले उच्च वर्ग के लोगों में यह रोग ज्यादा पाया जाता है. ज्यादा आराम करने वाले व्यक्तियों में भी यह रोग होता है.

मधुमेह रोग की पहचान एवं लक्षण

मधुमेह रोग के प्रारंभिक लक्षणों में प्रमुख है –

  • अत्यधिक मात्रा में व बार-बार गंदला पेशाब आना,
  • अधिक प्यास लगना,
  • भूख अधिक लगना,
  • पूरी खुराक भोजन करने पर भी तीव्रता के साथ वजन कम होना,
  • थोड़ा सा काम करने पर ही शरीर में थकावट महसूस होना,
  • चक्कर आना तथा
  • शक्कर की मात्रा अधिक बढ़ जाने पर बेहोश हो जाना.

इनके अलावा जब व्यक्ति मधुमेह रोगी हो जाए यानी कि प्रारंभिक लक्षणों के उत्पन्न होने के पश्चात भी उसे इसका संदेह न हो एवं खानपान में लापरवाही करता रहे, इसकी सही जांच व चिकित्सा न कराए तब उसको मधुमेह रोग संपूर्ण रूप से जकड़ लेता है एवं शरीर को अंदर से खोखला कर देता है.

  1. मूत्र का अपेक्षित घनत्व 1020 से 1070 तक हो जाता है.
  2. मधुमेह रोगी का घाव जल्दी नहीं भरता है.
  3. रोगी का वजन अचानक गिर जाता है,
  4. अधिक थकावट एवं कमजोरी महसूस करता है,
  5. रात को नींद में शरीर को चीटियां रेंगने जैसा प्रतीत होता है,
  6. नींद नहीं आने की शिकायत,
  7. गला व मुंह सूखना,
  8. जीभ का खुरदरी होना,
  9. रक्त व मूत्र में एसीटोन की मात्रा बढ़ जाना तथा
  10. पुरुषों में मैथुन की इच्छा नष्ट हो जाती है.
  11. साथ ही आंखों से कम दिखने लग जाता है.
  12. महिलाओं में रजोधर्म मासिक धर्म अधित एवं अनियमित हो जाता है.
  13. इसके कारण टी.बी. व हृदय रोग भी उत्पन्न हो जाते हैं.

विश्व स्तर पर मधुमेह के बारे में जो चिंता व्याप्त की जा रही है. उसका पता हमें देश भर में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र द्वारा मिल रहा है. आज भारत में मधुमेह सबसे बड़ी समस्या मानव के सामने खड़ी है. इस रोग को प्रारंभिक अवस्था में ही रोक पर नियंत्रण किया जा सकता है. साथ ही आहार विहार में भी सुधार जरुरी है सूर्य और शंख शक्ति के माध्यम से मधुमेह रोग को जड़ मूल से खत्म किया जा सकता है.

शंख थैरेपी चिकित्सा से मधुमेह रोग निदान के प्रयोग

शंख थेरेपी क्या है?

ऐलोपैथी चिकित्सा एवं नेचरोपैथी (प्राकृतिक चिकित्सा) यानी अल्टरनैटिव मेडिसिन में आज जितनी भी वैकल्पिक चिकित्सा, पद्धतियां चल रही है, उनमें यह शंख थैरेपी चिकित्सा पद्धति पूर्ण रूप से प्राकृतिक होने से अधिक कारगर सिद्ध हो रही है. विश्व में पहली बार चिकित्सा जगत के इतिहास में एक नया चमत्कारी आविष्कार कर शंख थैरेपी चिकित्सा पद्धति की खोज का दावा किया है.

इस वैकल्पिक चिकित्सा में व्यक्ति के शारीरिक मानसिक, भावनात्मक लक्षणों के आधार पर विभिन्न पेड़ पौधों फूल, कलियों, हिमालय की वनस्पतियों का स्वरस को शंख के माध्यम से सूर्य की किरणों के द्वारा दवाइयां तैयार की जाती है, जिसका अन्वेषक में स्वयं होने का दावा करता हूं. इस पद्धति से रोगी रोग मुक्त होकर हमेशा के लिए स्वस्थ रहता है तथा स्वास्थ्य संरक्षण भी किया जा सकता है.

मधुमेह रोग को नियंत्रण करने में आवश्यक सामग्री प्रथम गुरुड विष्णु शंख जो कि 100 प्रतिशत प्राकृतिक कैल्शियम से समुद्र में बना होता है. दूसरी सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणें तथा दिव्य वनस्पतियों का स्वरस, गंगाजल, देशी गाय का गोमूत्र की आवश्यकता होती है. शंख थैरेपी चिकित्सा सूर्य शक्ति के माध्यम से मधुमेह रोग का दावे के साथ उपचार किया जा सकता है. यह पद्धति प्राकृतिक होने पर पूर्ण रुप से वैज्ञानिक सिद्धांतों व आधारित है, जिसको अमेरिका अंतरिक्ष शोध संस्थान नासा ने प्रमाणित किया है.

वैज्ञानिक आधार

जिसका लाभ बिना कोई साइड इफेक्ट किए ही होता है. इसका वैज्ञानिक आधार यह है कि शंख समुंद्र में पैदा होने से जल तत्व होता है. मानव शरीर भी पंचतत्वों से बना है. जलतत्व, अग्नि, पृथ्वी, आकाश, वायु तत्व जिसमें मानव शरीर में प्रमुख 71 प्रतिशत जल तत्व पर आधारित है एवं हमारी पृथ्वी पर भी 71 प्रतिशत जलतत्व की मात्रा है.

यह सर्व विदित तथ्य है. इससे यह सिद्ध होता है कि जल बिना जीवन नहीं है. आज की विज्ञान का मूलमंत्र भी यही है. शंखकल्प में फास्फोरस व गंधक की मात्रा भी होती है. सूर्य की किरणों से ऊर्जा एनर्जी प्राप्त कर शंख में रोग निदान के लिए रखा पेय दवाई बन जाती है. इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता आ जाती है.

इस पद्धति द्वारा कई लोगों का सफलतापूर्वक इलाज किया है. शंख थैरेपी से होने वाला रोग उपचार किसी भी चमत्कार से कम नहीं है. शंख थैरेपी चिकित्सा विधि बहुत सरल होने से उपयोग करने वालों के लिए बहुत ही आसान है. शक्तिशाली और कारगर पद्धति होने के कारण मेडिकल जगत के विशेषज्ञों की भरोसे मंद भी बनती जा रही है.

चिकित्सा जगत में इस विधि को बहुत जल्दी ही स्वीकृति मिलने वाली है. यह उन सिद्धांतों पर काम करती है. मानव का पंचतत्व संतुलन बराबर बनाये रखती है. शंख शक्ति से निर्मित दवा से रक्त में मौजूद लौह कणों को सक्रिय कर देती है. इस तरह रक्त तेजी से शरीर के अंदर संचालित होने लगता है. इससे रक्त प्रवाह में किसी तरह बाधा नहीं आती है. खून जमता नहीं है और कैल्शियम अथवा कोलेस्ट्राल का संतुलन भी बराबर बना रहता है.

शंख शक्ति से हड्डियों में कैल्शियम की कमी भी पूरी हो सकती है. अतः इससे स्वास्थ्य संरक्षण भी संभव है. मधुमेह के रोगी के लिए आवश्यकता अनुसार इंसुलिन की मात्रा ब्लड में बनाए रहती है, जिससे डायबिटीज कंट्रोल में रहती है.

मधुमेह रोगी को शंख थैरेपी चिकित्सा से उपचार करने के बाद एक घंटे तक ठंडी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए तथा दवाई का प्रयोग हमेशा भूखे पेट ही करना चाहिए. मधुमेह का रोगी रोग मुक्त होकर के जीवन में सुखी रहता है. मीठा जीवन में कभी भी सेवन नहीं करना चाहिए.

1 . गोमूत्र का प्रयोग

देशी गाय का गोमूत्र 100 ग्राम तांबे के पात्र में लेकर विष्णु शंख में डालकर सूर्य की किरणों में तीन घंटे तक रखकर मधुमेह रोगी को भूखे पेट सेवन करना चाहिए. इस प्रकार गोमूत्र का प्रयोग पांच दिन तक करना चाहिए पुराने रोगी को पुराने रोगी को सात दिन तक दवाई का प्रयोग करना चाहिए. सेवन के तुरंत बाद सिद्धासन लगाना हितकर होता है या प्राणायाम, व्यायाम, योग आदि करें. प्रातःकाल घूमना ठीक रहता है.

2. अमरबेल का प्रयोग

अमरबेल पंचागं का स्वरस 50 ग्राम निकालकर विष्णु शंख में डालकर तीन घंटे सूर्य की किरणों में प्रकाश में रखकर मधुमेह रोगी को भूखे पेट सेवन कराने से मधुमेह रोगी बिल्कुल ठीक हो जाता है. यह प्रयोग सात दिन तक रोजाना उपरोक्त विधि से करने पर लाभ होता है. ध्यान रहे अमरबेल रोजाना नई प्रयोग में लानी चाहिए. ध्यान रहे कि अमर बेल पेड़ पौधे के ऊपर लगने वाली ही काम में लानी चाहिए. इसे आकाश बैल भी कहते हैं इसको शास्त्रों में रक्तशौधक भी बताया गया है. यह एक चमत्कारी वनौषधि मानी गई है.

3. जंगली करेला का प्रयोग

जंगली करेला का स्वरस 100 ग्राम निकालकर तीन घंटे तक सूर्य की किरणों में विष्णु शंख में रखें. तत्पश्चात मधुमेह रोगी को भूखे पेट सेवन करना चाहिए. यह प्रयोग सात दिन तक रोजाना करने से मधुमेह रोग से मुक्ति मिलती है. जंगली करेला नहीं मिलने पर उसकी जड़ का स्वरस प्रयोग करने का विधान है. यह जंगल में केर के झाड़ के नीचे होता है.

4. बिल्व पत्र का रस

शिव बिल्व पत्र का 100 ग्राम स्वरस निकाल करके विष्णु शंख के मुंह में डाल कर तीन घंटे तक सूर्य की किरणों में रखने से शंख थैरेपी की चिकित्सा से बिल्व रस व शंख क्रिया कर के अद्भुत दवाई बन जाती है. इसका सेवन मधुमेह के रोगी को सात दिन तक रोजाना करने से रोग से छुटकारा मिल जाता है यह प्रयोग अनुभूत सिध्द है. बाद में मीठा प्रयोग में नहीं लाना चाहिए.

5. गोदुग्ध व गंगा जल का प्रयोग

उपरोक्त प्रयोगों में से सुविधा अनुसार कोई भी एक प्रयोग का नियमित रूप से मधुमेह की दवाई का सेवन कराने के बाद रोगी को रोग मुक्त होने पर शरीर मार्जन क्रिया करना अति आवश्यक होता है. इस विधि में 125 ग्राम गंगाजल एवं 125 ग्राम देशी गाय का दूध को मिलाकर विष्णु शंख में दो घंटे तक सूर्य की किरणों में रखकर मधुमेह रोगी को भूखे पेट सेवन कराना चाहिए.

इस विधि से रोग मुक्ति होने पर शरीर मार्जन करना होता है तथा जीवन में मीठा काम में नहीं लेना चाहिए शंख में 100 प्रतिशत प्राकृतिक कैल्शियम होने के कारण शंखोदक, जल पान करने से शरीर हड्डी मजबूत होती है. दांतों की सुरक्षा रहती है. दांत जीवन भर तक खराब नहीं होते हैं. वृद्ध आदमी शंखकल्प का नियमित प्रयोग करे तो दांतो का रोग कभी नहीं होती है और दांत जैसे है वैसे बने रहते हैं.