
एक जंगल में एक बहुत पुराना बरगद का पेड़ था | उस पेड़ पर सारस ने अपना घोंसला बना रखा था | सारस पक्षी पेड़ पर ही अपने घोंसले बनाते हैं | मादा पक्षी अपने अंडे भी उसी घोंसले में रखती हैं | फिर उनके बच्चे भी उसी घोंसले में रहते हैं | वे वहां बहुत वर्षों से रह रहे थे और सभी बहुत खुश थे |
फिर एक दिन अचानक वहां एक बहुत बड़ा सांप आकर रहने लगा | उसने पेड़ पर बने सारस के घोसलों को देख लिया | रोज धीरे-धीरे सांप ने सारस के अंडों को खाना शुरु कर दिया | इस बात को लेकर सारस बहुत ही उदास रहने लगे और अंत में थक हारकर उन्होंने सांप को अपने अंडे खाने से रोकने के बारे में सोचा | लेकिन उनको नहीं पता था कि सांप को कैसे रोका जाए |
इसलिए दोनों सारस एक बहुत बूढ़े और समझदार सारस के पास जाकर उससे उपाए पूछने गए | तब बूढ़े सारस ने उनसे कहा कि वहां पास की नदी के किनारे एक नेवला रहता है | वह सांप का दुश्मन है | तुम नेवले के घर के बाहर मछलियां रख दो और उन मछलियों की लाइन को सांप के घर तक ले जाओ | इस तरह नेवला सांप के घर तक पहुंच जाएगा | यह तरकीब उनके बड़े काम आई और उन्होंने मछलियों की पंक्ति बनाकर सांप के घर तक का रास्ता नेवले को दिखा दिया |
नेवला जैसे ही सांप के घर पहुंचा, सांप बाहर आ गया और दोनों के बीच में घमासान लड़ाई शुरू हो गई | दोनों ने एक दूसरे को मारना और काटना शुरु कर दिया और अंत में नेवले ने सांप को मार दिया | मरे हुए सांप को देखकर दोनों सारस बहुत खुश हुए और अपनी जीत की खुशियां मनाने लगे | लेकिन उनकी खुशी बस थोड़ी देर के लिए ही थी | क्योंकि नेवला पेड़ पर चढ़ कर सारस के अन्डे और बच्चों को भी खा गया |
सारस यह भूल गए थे कि नेवला उनका भी जानी दुश्मन होता है | अब नेवला उनका नया दुश्मन बन गया था | वह समझ गए थे कि नेवले से उनकी सहायता अपने फायदे के लिए ही की थी | लेकिन अब वह कुछ नहीं कर सकते थे |
इसलिए किसी से सहायता सोच समझकर ही लेनी चाहिए |