
सारनाथ बनारस मन्दिर Sarnath Varanasi Mandir History In Hindi
सारनाथ भगवान बुद्ध के तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यह काशी (बनारस) से 10 कि.मी. उत्तर में स्थित है। भगवान बुद्ध ने अपना सबसे पहला उपदेश अपने प्रिय शिष्यों को इसी स्थान पर दिया था। यहां पर एक चौखंड स्तूप है। स्तूप के चारों ओर बाड़ा बना हुआओर उसके बीच में एक मिट्टी का टीला है।
सारनाथ में भारत सरकार ने एक संग्रहालय का निर्माण करवाया है जिसमें खुदाई से प्राप्त भगवान बुद्ध के समय की वस्तुएं रखी गयी हैं। भारत सरकार के राष्ट्रीय चिन्ह में | जिस चतुर्मुखी सिंह को लिया गया है, वह इसी संग्रहालय में है।
सारनाथ में एक गुम्बद विहार है जिसे लंका के एक नागरिक धर्मपाल ने बनवाया था। इसके अन्दर भगवान बुद्ध की सुनहरी मूर्ति है, जो बहुत ही सुंदर है दीवारों पर भगवान बुध्द के जीवन से संबंधित कई अच्छी तस्वीरें हैं। एक जापानी चित्रकार ने इन चित्रों को बनवाया था ।
सारनाथ में एक चाइनीज मंदिर भी है। इसे एक चीनी नागरिक ने बनवाया था। मंदिर में भगवान बुद्ध की मूर्ति गहन ज्ञान मुद्रा में स्थित है।
सारनाथ के साथ ही एक श्री जैन मंदिर भी है। इसका भी अपना महत्व है। तेइसवें तीर्थकर भगवान पाश्र्वनाथ का जन्म काशी में ही हुआ था। सारनाथ में पहले घना जंगल था तथा यहां मृग विहार किया करते थे। उस समय इसका नाम ‘ऋषिपत्तन मृगदाय’ था। ज्ञान प्राप्त करने के बाद गौतम बुद्ध ने यहां अपना प्रथम उपदेश दिया। सम्राट अशोक के समय में यहां का ‘धमेक स्तूप’ सारनाथ के प्राचीन इतिहास की याद आज भी दिलाता है विदेशी आक्रमण, धार्मिक वेमनस्य के कारण यहां का महत्व धीरे-धीरे कम होता चला गया। सारनाथ का नाम मृगदाय सारंगदेव महादेव के नाम पर पड़ा।
बीच में लोग इसे भूलते चले गए। यहां के ईट-पत्थर निकाल दिए गए| कहते हैं कि वह इतने अधिक थे कि उनसे बनारस का एक मुहल्ला ही तैयार हो गया। 1905 ई. में यहां पुरातत्व विभाग ने खुदाई की तब सारनाथ का जीणोंधार हुआ। एक संग्रहालय बनाया गया जिसमें खुदाई से प्राप्त वस्तुएं रखी गयीं। बोधिवृक्ष की एक शाखा लगायी गयी और प्राचीन समय के मृगदाय की याद दिलाने के लिए हरे-भरे उद्यान तैयार कर वहां कुछ हिरण छोड़े गए। साल भर में यहां अनेकों पर्यटक आते हैं। बौद्धों के लिए यह विशेष आकर्षण एवं धार्मिक महत्व का स्थान है।