
शतावरी की उन्नतशील खेती कैसे करें (Shatavari (Asparagus) Ki Kheti Kaise Kare)
यह भी एक विशेष पोषक-तत्व युक्त सब्जी है तथा यह एक बहुवर्षीय फसल भी है । इसको मुलायम, कोमल शाखाओं हेतु उगाया जाता है । यह प्रकन्द (Suckers) की तरह पौधे की जड़ के पास से निकलती हैं जिन्हें मुलायम, रेशे पड़ने से पहले ही तोड़ा या काटा जाता है । इन मुलायम शाखाओं द्वारा सूप (Soup) व अन्य सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है तथा यहां तक कि इन शाखाओं को सब्जी उत्पादक (Vegetables Products) जैसे- डिब्बा बन्दी (Canning) के लिये अधिकांश उपयोग में लाया जाता है । इन मुलायम शाखाओं को 3-4 वर्ष में पूर्णत: फसल के रूप में प्राप्त किया जाने लगता है । ये शाखाएं एक तने का रूप धारण किये होती हैं जिनको कुछ उबालकर (Half-Boiling) भी खाने में इस्तेमाल किया जाता है । यह फसल कई वर्ष 10-15 वर्ष तक स्वस्थ बनी रहती है । इस सब्जी को मैदानी भागों व कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है । यह फसल अधिक सरदी या बर्फीला मौसम पसन्द नहीं करती है क्योंकि सर्दी में शाखाएं सूख जाती हैं । बसन्त त्रतु का मौसम अधिक उपयुक्त रहता है तथा इसी मौसम में भूमि या मेड़ों से नई शाखाएं निकल कर नये पौधे तैयार हो जाते हैं तथा मुलायम तने या शाखाएं निकल आती हैं ।
मौसम परिवर्तन के समय नयी-नयी शाखाएं निकलती है जिनको उचित वृद्धि होने पर ही काटे, अन्यथा शाखाएं कड़ी (Hard) होकर खाने योग्य नहीं रहतीं । इन्हीं शाखाओं पर पत्तियां निकलती हैं । जो देखने में हरे रंग की सुन्दर लगती हैं । इस सब्जी की अधिक मांग बड़े-बड़े होटलों (Five Star Hotels) तथा बड़े-बड़े शहरों की उच्च श्रेणी का मॉर्डन-सब्जी बाजार (Modern Vegetable Market) एवं उच्च सब्जी-दुकानों (Big Vegetables Shops) में होती है ।
शतावरी की उन्नतशील खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु (Soil and Climate for Shatavari Kheti)
सर्वोत्तम भूमि दोमट या हल्की बलुई दोमट रहती है । लेकिन भूमि में उपजाऊपन होना आवश्यक है जिसका पी. एच. मान 7.0-7.5 के आसपास हो । जलवायु बसन्त ऋतु वाली जिसमें तापमान 30-35 डी०सेग्रेड हो तथा हल्की आर्द्रता का होना भी आवश्यक है क्योंकि इसी मौसम में तने या शाखाएं अधिक बनती हैं । वर्षा का मौसम भी वृद्धि के लिये उत्तम रहता है ।
शतावरी की खेती के लिए खेत की तैयारी (Shatavari Ki Kheti Ke Liye Khet Ki Taiyari)
खेत की सर्वप्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए जिससे घास व अन्य फसल के अवशेष मिट्टी में दबकर गल-सड़ जायें । इस् प्रकार से 4-5 जुताइयों की आवश्यकता पड़ती है । तैयार खेत की पहचान मिट्टी का भुरभुरा होना माना जाता है । खेत में सूखी घास आदि भी नहीं रहनी चाहिए ।
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शतावरी की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Shatavari)
एस्पैरागस की किस्में स्थानीय रूप से जो भी मिले उगाया जा सकता है । लेकिन एक उन्नत किस्म है जिसमें अधिक शाखाएं निकालती हैं । इसकी स्थानीय किस्म भी उगा सकते हैं ।
1. परफैक्शन (Perfection) किस्म मुख्य है ।
प्रवर्धन-विधि (Propagation)- एस्पैरागस का प्रवर्धन बीज एवं वनस्पतिक विधि द्वारा किया जाता है ।
बीज परिपक्व शाखाओं से तैयार किया जाता है जिन्हें अप्रैल-मई के माह में बोकर जून-जुलाई में क्यारियों में लगा दिया जाता है ।
वनस्पतिक-विधि द्वारा बड़े व पुराने पौधों से फरवरी-मार्च के महीनों में जड़ विभाजित करके नये पौधे तैयार किये जाते हैं जो आगे चलकर वृद्धि करते हैं ।
बीज की बुवाई एवं समय (Sowing of Seed and Time)
बीज की बुवाई मुख्यत: जून-जुलाई के माह में करते हैं तथा खेत में इन्हें फरवरी-मार्च के माह में लगाते हैं । बीज 20-25 दिन के बाद ही उगते हैं । पौधों को एक वर्ष के बाद ही लगाना चाहिए ।
पौधे रोपने की दूरी (Distance of Planting)
पौधों को रोपते समय पौधे से पौधे की दूरी 45 सेमी. तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 120-150 सेमी. रखना चाहिए जिससे धीरे-धीरे करके पौधे वृद्धि कर बड़े पौधे तैयार हो जाते हैं ।
पौधे रोपने का ढंग (Method of Transplanting)
पौधों को रोपने से पहले क्यारियों में मोटी मेड या नाली जिनकी गहराई 40 सेमी. तथा चौड़ाई 45 से 60 सेमी. रखकर मेड के ऊपर पौधों को उचित दूरी पर लगाना चाहिए तथा पानी नालियों में दें । इसके पौधे पेड़ों पर अधिक वृद्धि करते हैं । इन पेड़ों पर पौधों को 15 सेमी. गहरा दबाना चाहिए । पानी की मात्रा पर्याप्त रूप से दें जिससे पौधों को नमी पहुंचती रहे ।
खाद एवं उर्वरक की मात्रा (Quantity of Manure and Fertilizers)
गोबर की सड़ी खाद 12-15 टन प्रति हैक्टर दें तथा नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा 80:60:50 किलो प्रति हैक्टर दें । यह मात्रा (नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश) खेत तैयारी या पौधे लगाने से 15 दिन पूर्व देनी चाहिए । नत्रजन की आधी मात्रा को दो बार में दें । पौध रोपने से 20-25 दिन बाद तथा जनवरी-फरवरी माह में खड़ी फसल में टोप-ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए ।
सिंचाई का प्रबन्ध (Management of Irrigation)
सर्वप्रथम सिंचाई रोपाई के तुरन्त बाद दे । लेकिन गर्मियों में पानी की विशेष व्यवस्था रहे । अर्थात् प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए । इस प्रकार से शरद ऋतु में 15-20 दिन के अन्तर से तथा गर्मियों में 8-10 दिन के अन्तर से वर्षाकाल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें ।
मिट्टी चढ़ाना (Earthing)
यह फसल एक बहुवर्षीय है जिसकी वर्ष में एक बार मिट्टी अवश्य चढ़ानी चाहिए । मिट्टी चढ़ाने का उत्तम समय फरवरी-मार्च का होता है क्योंकि मार्च के बाद मौसम बदल जाता है तथा पौधे अधिक वृद्धि करते हैं जिससे तने या शाखाएं अधिक मात्रा में निकल सकें ।
शाखाओं की कटाई (Harvesting of Stems)
जब पौधों में से भूमि की सतह से नयी कोमल शाखाएं निकलने लगे जिनका ऊपरी भाग हल्का हरा तथा नीचे से सफेद होता है । इनकी लम्बाई 20-30 सेमी. हो तब ही भूमि की सतह से चाकू की सहायता से काटें । ध्यान रहे कि ये नयी शाखाएं मुलायम ही काटी जायें अन्यथा कठोर होने पर स्वाद बदल जाता है तथा बाजारीय मूल्य भी घट जाता है । कठोर व रेशे हो जाने से स्वाद नहीं रह पाता ।
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उपज (Yield)
औसतन प्रति पौधा 15-20 शाखाएं (Stems) प्राप्त होती हैं तथा प्रति हैक्टर औसतन 80-100 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है ।
बीमारियां एवं कीट-नियन्त्रण (Diseases and Insect Control)
बीमारी लगने पर फफूंदीनाशक दवा का स्प्रे करें तथा कीट लगने पर रोगोर, एण्डोसल्फान तथा मोनोक्रोटोफास कीटनाशक का 1% के घोल का स्प्रे करें ।
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