दुर्गापूजा पर निबंध Short Essay On Durga Puja In Hindi

दुर्गापूजा पर निबंध Short Essay On Durga Puja In Hindi Language

भारत को त्योहारों का देश कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी | यहां अनेक धर्मों एंव जातियों के लोग रहते हैं और सबके अपने-अपने त्योहार हैं | इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो भारत में हर महीने किसी न किसी त्योहार की धूम रहती है, किन्तु दुर्गापूजा हिंदुओं का एक ऐसा त्योहार है जिसकी धूम पूरे दस दिनों तक रहती है और इन दस दिनों के दौरान पूरा भारत भक्ति-रस में डूबा नजर आता है | हर पर्व या त्योहार का मनुष्य के जीवन में अपना विशेष महत्त्व होता है, क्योंकि इनसे न केवल विशेष प्रकार के आनंद की प्राप्ति होती है बल्कि जीवन में उत्साह एवं नवऊर्जा का संचार भी होता है | दुर्गापूजा भी एक ऐसा ही त्योहार है, जो हमारे जीवन में उत्साह एवं ऊर्जा का संचार करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है |

दुर्गापूजा त्योहार वैसे तो वर्ष में दो बारा आता है, एक बार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में जिसे वासंतिक नवरात्र कहा जाता है एवं दूसरी बार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में जिसे शारदीय नवरात्र कहा जाता है, किन्तु इन दोनों में शारदीय नवरात्र का महत्त्व अधिक है, एंव इसे अधिक धूमधाम से मनाया जाता है | यह हिन्दू समाज का एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है जिसका धार्मिक, आध्यात्मिक, नैतिक व सांसारिक महत्त्व है | भक्तजन इस अवसर पर दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं, अतः इसे नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है |

दुर्गापूजा का सम्बन्ध एक पौराणिक कथा से है | इस कथा के अनुसार एक समय देवताओं के राजा इंद्र एवं दैत्यों के राजा महिषासुर के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया | इस युद्ध में देवराज इंद्र की पराजय हुई और महिषासुर इंद्रलोक का स्वामी बन बैठा | तब देवतागण ब्रह्मा के नेतृत्व में भगवान विष्णु एंव भगवान शंकर की शरण में गए | देवताओं की बातें सुनकर भगवान विष्णु तथा शंकर क्रोधित हो गए, फलस्वरुप उनके शरीर से एक तेज पुंज निकलने लगा, जिससे समस्त दिशाएं जलने लगीं | यही तेज पुंज अंततः देवी दुर्गा के रूप में परिवर्तित हो गया | सभी देवताओं ने देवी की अराधना की और उनसे महिषासुर का नाश करने का निवेदन किया | सभी देवताओं से आयुध एंव शक्ति प्राप्त कर देवी दुर्गा ने महिषासुर को युद्ध में पराजित कर उसका वध कर दिया | इसी कारण उन्हें महिषासुर-मर्दिनि भी कहा जाता है |

दुर्गापूजा (शारदीय नवरात्र) का प्रारंभ आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली) तिथि को कलश स्थापना के साथ होता है | ततदुपरान्त देवी दुर्गा की प्रतिमा पूजास्थल पर बीच में स्थापित की जाती है | उनके दायीं ओर देवी महालक्ष्मी, गणेश तथा विजया नामक योगिनी की और बायीं ओर कार्तिकेय, देवी महासरस्वती तथा जया नामक योगिनी की प्रतिमाएं रहती हैं | चूंकि भगवान शंकर की पूजा के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है अतः उनकी भी पूजा की जाती है | इस तरह नौ दिनों तक दुर्गा के नौ रूपों शैलपुत्री, ब्रम्हचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एंव सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है | किन्तु, नवमी तक चलने वाले इस महापूजन की वास्तविक धूमधाम की शुरूआत षष्ठी के दिन प्राण-प्रतिष्ठा करने के साथ ही होती है | बंगाल में षष्ठी के दिन प्राण-प्रतिष्ठा के इस विधान को बोधन अर्थात आरंभ कहा जाता है | इसी दिन माता के मुख से आवरण हटाया जाता है |

गुजरात में शारदीय नवरात्र के दौरान गरबा की धूम रहती है | नवयुवक एवं नवयुवतियां अपने साथियों के साथ गरबा खेलते हैं | इस दौरान लोग व्रत रखते हैं, देवी की अखंड ज्योत जलाते हैं, प्रतिदिन हवन करते हैं और कुल मिलाकर पूरे भक्तिभाव से मां दुर्गा की आराधना में लीन हो जाते हैं तथा विधि-विधान से पूजा करते हैं | नवरात्रि के दौरान जगह-जगह रामलीला का आयोजन किया जाता है |

नौ दिनों तक दुर्गा की पूजा के बाद दशमी के दिन शाम को उनकी प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है | इस दिन को विजयदशमी या दशहरा के रूप में मनाया जाता है | दशमी को विजयदशमी के रूप में मनाने के पीछे भी एक पौराणिक कथा है | भगवान राम ने रावण पर विजय पाने के लिए दुर्गा की पूजा की थी | इसलिए इस दिन को लोग शक्ति-पूजा के रूप में भी मानते हैं एंव अपने अस्त्र-शस्त्र की पूजा करते हैं | अन्ततः राम इसी दिन मां दुर्गा के आशीर्वाद से रावण पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे थे, तब से इस दिन को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक स्वरुप रावण, कुंभकरण एंव मेघनाथ के पुतलों का दहन किया जाता है | कहीं-कहीं इस दिन शमी वृक्ष की पूजा की जाती है | बंगाल की दुर्गापूजा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है | दुर्गापूजा के दौरान लगभग पूरा बंगाल खूबसूरत पंडालों एंव दुर्गा की प्रतिमाओं से सज जाता है |

भारत के हर त्योहार के पीछे एक सामाजिक कारण होता है | दुर्गापूजा मनाने के पीछे भी एक सामाजिक कारण है | भारत एक कृषि-प्रधान देश है | आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष तक किसान खरीफ फसल काट कर इसका उचित मूल्य प्राप्त कर चुके होते हैं | इसके बाद अगली फसल को बोने तक उनके पास पर्याप्त समय होता है | इस समय को त्योहार के रूप में मनाने से उनके जीवन में उत्साह एंव नवऊर्जा का संचार होता है और इसकी समाप्ति तक वे पुनः परिश्रम करने के लिए ऊर्जावान हो जाते हैं |

दुर्गापूजा अनीति, अत्याचार तथा तामसिक प्रवृत्तियों के नाश के प्रतीक स्वरुप मनाया जाता है | दुर्गापूजा के रूप में हम स्त्री-शक्ति की पूजा करते हैं, किन्तु क्या विडम्बना है कि जिस देश में स्त्री की पूजा सदियों से महिषासुर-मर्दिना के रूप में होती रही है, वहीँ आज स्त्रियों का अपने ही घर, समाज एवं देश में महिषासुर रूपी लोगों द्वारा मान-मर्दन होता है | दुर्गापूजा की सार्थकता तब ही होगी जब हम स्त्रियों को वास्तविक शक्ति का आभास कराएंगे | आज फिर अत्याचार, भ्रष्टाचार एंव तामसिक प्रवृत्तियों के प्रतीक महिषासुरों की संख्या में वृद्धि हो चुकी है | ऐसे समय में आवश्यकता इस बात की है कि जिस तरह देवताओं ने अपनी सारी शक्तियां देवी दुर्गा को सौंप कर उनसे महिषासुर के नाश का निवेदन किया था, उसी प्रकार हम सभी अपनी सारी शक्तियां स्त्री को सौंप कर उससे इन महिषासुरों के नाश का निवेदन करें |

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