मुंशी प्रेमचन्द पर निबंध Short Essay On Munshi Premchand In Hindi

Short Essay On Munshi Premchand In Hindi

मुंशी प्रेमचन्द पर निबंध Short Essay On Munshi Premchand In Hindi Language

Short Essay On Munshi Premchand In Hindi

हिन्दी न केवल भारत की राष्ट्रभाषा है बल्कि अंग्रेजी एवं मंदारिन (चीन की भाषा) के बाद दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा भी है | यही कारण है कि इसके पाठकों की संख्या दुनियाभर में करोड़ो में है और हिन्दी के दुनियाभर के इन करोड़ो पाठकों में शायद ही कोई ऐसा होगा जो प्रेमचन्द को न जानता हो | प्रेमचन्द जिन्हें दुनिया ‘उपन्यास सम्राट’ के तौर पर जानती है, तथा साहित्य जगत ने उनके लेखन से प्रभावित होकर उन्हें ‘कलम के सिपाही’ का उपनाम दिया है |

प्रेमचन्द, जिनके बचपन का नाम धनपतराय था, का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश में वाराणसी के निकट लमही नामक ग्राम में हुआ था | उनके पिता का नाम अजायब लाल शर्मा तथा मां का नाम आनंदी देवी था | प्रेमचन्द जब 7 वर्ष के थे, तब उनकी मां का निधन हो गया, जिसके पश्चात उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली | विमाता की अवहेलना एंव निर्धनता के कारण उनका बचपन अत्यंत कठिनाइयों में बीता |

प्रेमचन्द की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई | जब वे पढ़ाई कर रहे थे तब ही 15 वर्ष की अल्प आयु में उनका विवाह कर दिया गया | विवाह के बाद घर गृहस्थी का बोझ उनके कंधों पर आ गया था | घर-गृहस्थी एंव अपनी पढ़ाई का खर्चा चलाने के लिए उन्होंने ट्यूशन पढ़ाना शुरु किया | इसी तरह से संघर्ष करते हुए उन्होंने बी.ए. तक की शिक्षा पूरी की | इस बीच उनका अपनी पहली पत्नी से अलगाव हो गया, जिसके बाद उन्होंने शिवरानी देवी से दूसरा विवाह कर लिया |

पढ़ाई पूरी करने के बाद वे एक अध्यापक के रूप में सरकारी नौकरी करने लगे एंव तरक्की करते हुए स्कूल इंस्पेक्टर के पद पर पहुंच गए | सन 1920 ई. में जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया, तो प्रेमचन्द ने उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया | सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद वे साहित्य सेवा में रम गए और ब्रिटिश सरकार के विरोध में जनता को जागरुक करने के लिए लिखना शुरु कर दिया | इस कार्य के लिए उन्होंने अपनी प्रकाशन संस्था की भी शुरुआत की तथा अपने संपादन में ‘हंस’ नामक एक पत्रिका निकालनी प्रारम्भ की | आर्थिक अभाव एंव अंग्रेजों की गलत नीतियों के कारण मजबूरन उन्हें इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा | ‘हंस’ के अतिरिक्त उन्होंने ‘मर्यादा’, ‘माधुरी’ एंव ‘जागरण’ जैसी पत्रिकाओं का संपादन भी किया |

प्रेमचन्द पहले नवाबराय के नाम से लिखते थे | जब उनकी कुछ रचनाओं, जिनमें ‘सोजेवतन’ प्रमुख है, को ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर लिया तो उन्होंने प्रेमचन्द के छद्म नाम से लिखना शुरु किया | बाद में वे इसी नाम से प्रसिद्ध हो गए | प्रेमचन्द ने सबसे पहले जिस कहानी की रचना की थी, उसका नाम है- ‘दुनिया का सबसे अनमोल रत्न’ | उन्होंने 18 उपन्यासों की रचना की, जिनमें सेवासदन, निर्मला, कर्मभूमि, गोदान, गबन, प्रतिज्ञा, रंगभूमि उल्लेखनीय हैं | उनके द्वारा रचित तीन सौ से अधिक कहानियों में ‘कफन’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘पूस की रात’, ‘ईदगाह’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘पंच-परमेश्वर’ इत्यादि उल्लेखनीय हैं | उनकी कहानियों का संग्रह ‘मानसरोवर’ नाम से आठ भागों में प्रकाशित है | उनके द्वारा रचित नाटकों में ‘संग्राम’, ‘कर्बला’, ‘रूठी रानी’ तथा ‘प्रेम की वेदी’ प्रमुख हैं | उन्होंने इन सबके अतिरिक्त कई निबंध तथा जीवन-चरित्र भी लिखे | उनके निबंधों का संग्रह ‘प्रेमचन्द के श्रेष्ठ निबंध’ नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हैं | उन्होंने कुछ अन्य भाषाओं में पुस्तकों का अनुवाद भी किया, जिसमें ‘सृष्टि का प्रारंभ’, ‘आजाद’, ‘अहंकार’, ‘हड़ताल’ तथा ‘चांदी की डिबिया’ उल्लेखनीय हैं |

प्रेमचन्द ने साहित्य के माध्यम से भारत के दलित एवं उपेक्षित वर्गों का नेतृत्व करते हुए उनकी पीड़ा एंव विरोध को वाणी प्रदान की | उनकी रचनाओं का एक उद्देश्य होता था | अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने न केवल सामाजिक बुराइयों के दुष्परिणामों की व्याख्या की, बल्कि उनके निवारण के उपाय भी बताए | उन्होंने बाल-विवाह, बेमेल-विवाह, विधवा-विवाह, सामाजिक शोषण, अंधविश्वास इत्यादि सामाजिक समस्याओं को अपनी कृतियों का विषय बनाया एवं यथासंभव इनके समाधान भी प्रस्तुत किए | ‘कर्मभूमि’ नामक उपन्यास के माध्यम से उन्होंने छुआ-छूत की गलत भावना एंव अछूत समझे जाने वाले लोगों के उद्धार का मार्ग बताया है | उन्होंने लगभग अपनी सभी रचनाओं में धर्म के ठेकेदारों की पूरी आलोचना की है एवं समाज में व्याप्त बुराइयों के लिए उन्हें जिम्मेदार मानते हुए जनता को उनसे सावधान रहने का संदेश दिया है | ‘सेवासदन’ नामक उपन्यास के माध्यम से उन्होंने नारी शोषण के खिलाफ आवाज उठाई है | अपनी कई रचनाओं में हिन्दू-मुस्लिम सांप्रदायिकता पर गहरा आघात किया एंव ‘कर्बला’ नामक नाटक के माध्यम से उनमें एकता व भाईचारा बढ़ाने का सार्थक प्रयास किया |

इस तरह देखा जाए तो अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रेमचन्द ने न केवल ‘कलम के सिपाही’ के रूप में ब्रिटिश सरकार से लोहा लिया, बल्कि समाज सुधार के पुनीत कार्य को भी बखूबी अंजाम दिया | उनके उपन्यास ‘गोदान’ को यथार्थवादी उपन्यास की संज्ञा दी जाती है, क्योंकि इसके नायक होरी के माध्यम से उन्होंने समाज के यथार्थ को दर्शाया है | गाँव का निवासी होने के कारण उन्होंने किसानों के ऊपर हो रहे अत्याचारों को नजदीक से देखा था, इसलिए उनकी रचनाओं में यथार्थ दर्शन होते हैं | उन्हें लगता था कि सामाजिक शोषण एंव अत्याचारों का उपाय गांधीवादी दर्शन में है, इसलिए उनकी रचनाओं में गांधीवादी दर्शन की भी प्रधानता है | प्रेमचन्द गांव के किसान एंव मोची से लेकर शहर के अमीर वर्ग एंव सरकारी मुलाजिमों तक को अपनी रचनाओं का पात्र बनाया है | प्रेमचन्द को उनके महान उपन्यासों में उत्कृष्ट कथाशिल्प एवं प्रस्तुतीकरण के कारण ‘उपन्यास सम्राट’ कहा जाता है |

लंबी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को प्रेमचन्द का निधन हो गया | उन्होंने एक साहित्यकार के रूप में न केवल हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि समाज की समस्याओं का वर्णन करते हुए उनके निराकरण के उपाय भी बताए | उन्होंने साहित्य-सृजन को भारत के नवनिर्माण एवं जागरण का माध्यम बनाया | उनकी महान रचनाओं, जिनके कारण हिन्दी को दुनियाभर में एक विशिष्ट पहचान मिली, के लिए हिन्दी साहित्य प्रेमचन्द का सदा ऋणी रहेगा |

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