
सोनिया गांधी पर निबंध Short Essay On Sonia Gandhi In Hindi Language
बीसवीं सदी के अंतिम दशक में जब भारतीय राजनीति नई करवटें ले रही थी, तब इसे एक नई दिशा एवं दशा देने के लिए सोनिया गांधी ने भारतीय राजनीति में कदम रखा | यह वही सोनिया गांधी थी जिन्हें कभी राजनीति के नाम से भी घृणा थी | और आज स्थिति यह है कि उनकी राजनीतिक शक्ति के कारण उन्हें भारत ही नहीं दुनिया की सर्वाधिक शक्तिशाली नारियों में सम्मिलित किया जाता है | एक वक्त ऐसा था, जब उनके विदेशी मूल की होने के कारण देश भर में उनका व्यापक राजनीतिक विरोध हुआ था और तब उन्होंने प्रधानमंत्री जैसे पद को अस्वीकार कर न केवल त्याग का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि उन्होंने भारतीयता को पूर्णतः आत्मसात कर लिया है |
सोनिया गांधी के बचपन का नाम सोनिया मायनो था | उनका जन्म 9 दिसंबर 1946 को इटली में विन्सेजा नामक स्थान से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित एक छोटे से गांव लूसियाना में हुआ था | उनके पिता का नाम स्टेफिनो मायनो था, जो एक भवन-निर्माता व ठेकेदार थे | उनकी माता का नाम पाओलो मायनो है | उनका बचपन इटली के टूरिन नामक स्थान में बीता |
सोनिया की प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा लूसियाना एंव टूरिन में हुई | अंग्रेजी भाषा का अध्ययन करने के लिए उन्होंने 1964 ई. में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया | वहीँ उनकी मुलाकात राजीव गांधी से हुई, जो उस समय इसी विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी स्कूल में अध्ययन कर रहे थे | 1968 ई. में राजीव गांधी से विवाह के बाद सोनिया गांधी भारत आ गईं | उन्होंने 1970 ई. में राहुल गांधी एंव 1972 ई. में प्रियंका गांधी को जन्म दिया | सन 1983 ई. में उन्होंने भारत की नागरिकता ग्रहण कर ली |
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सन 1984 ई. में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी को राजनीति में आना पड़ा, तो सोनिया गांधी ने इसका भरपूर विरोध किया | उन्होंने अपने पति से अपने परिवार की खुशी एंव स्वतंत्रता के नाम पर राजनीति से दूर रहने की विनती की, किन्तु समय की मांग को देखते हुए पत्नी के विरोध के बावजूद राजीव गांधी को राजनीति में आना ही पड़ा | सोनिया गांधी के मन में राजनीति से घृणा ऐसे ही उत्पन्न नहीं हुई थी, राजनीति में फैले भ्रष्टाचार को उन्होंने नजदीक से देखा था, इसके बाद उन्होंने अपनी सास श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या भी देखी | इसलिए वे नहीं चाहती थी कि उनके परिवार के साथ कोई और हादसा हो, इसी डर के कारण वे अपने परिवार सहित राजनीति से दूर रहना चाहती थीं | किन्तु, एक वक्त ऐसा भी आया जब देश के हित एवं समय की मांग को देखते हुए अपने पति की तरह उन्हें भी राजनीति में आने का फैसला करना ही पड़ा |
उनके पति राजीव गांधी की हत्या होने के पश्चात कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी से पूछे बिना उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने की घोषणा कर दी, परंतु सोनिया गांधी ने इसे स्वीकार नहीं किया | उस समय उन्होंने राजनीति एंव राजनीतिज्ञों के प्रति अपनी घृणा और अविश्वास को इन शब्दों में व्यक्त किया था- “मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूंगी, परंतु राजनीति में कदम नहीं रखूंगी |” किन्तु, कांग्रेस की दुरावस्था को देखते हुए, अन्ततः 1997 में उन्हें इसकी प्राथमिक सदस्यता ग्रहण करनी पड़ी एवं उसके बाद 1998 ई. में उन्होंने इसका अध्यक्ष बनना भी स्वीकार कर लिया | इसके बाद विदेशी मूल के प्रश्न पर उनका काफी राजनीतिक विरोध हुआ एंव उनकी कमजोर हिंदी का भी मजाक उड़ाया गया उन पर परिवारवाद का आरोप भी लगा, किन्तु वे अपने कार्यों में संलग्न रहीं एवं राजनीति में अपनी सक्रिय भूमिका निभाती रहीं |
अक्टूबर 1999 में कर्नाटक के बेल्लारी एंव अपने दिवंगत पति राजीव गांधी के निर्वाचन क्षेत्र उत्तर प्रदेश के अमेठी से उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा और बेल्लारी लोकसभा क्षेत्र में जीत हासिल की | सन 1999 में वे 13वीं लोकसभा में विपक्ष की नेता चुनी गईं | सन 2004 के लोकसभा चुनाव में उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने 200 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की जिसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व में यू.पी.ए. गठबंधन सरकार बनाने में कामयाब रही | यद्यपि उस समय कांग्रेस के अधिकतर सदस्य सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री के रुप में देखना चाहते थे, किन्तु विदेशी मूल के मुद्दे को लेकर देश भर में हुए व्यापक विरोध एवं अन्य कारणों से उन्होंने देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर त्याग का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया | इसके बाद उनके परामर्श एंव इच्छा के अनुरूप डॉक्टर मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया | राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष होने के कारण सोनिया गांधी पर लाभ के पद पर होने के साथ-साथ लोक सभा सदस्य होने का आक्षेप लगा, जिसके कारण उन्होंने 23 मार्च 2006 को न केवल राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के अध्यक्ष पद से, बल्कि लोक सभा की सदस्यता से भी त्याग पत्र दे दिया | मई 2006 में वे उत्तर प्रदेश के रायबरेली लोकसभा सीट से पुनः सांसद चुनी गईं | महात्मा गांधी की वर्षगांठ के अवसर पर 2 अक्टूबर 2007 को सोनिया गांधी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित किया | 2009 के लोकसभा चुनाव में उनके नेतृत्व में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यू.पी.ए गठबंधन को एक बार फिर बहुमत मिला और इस बार भी उनके परामर्श एंव इच्छा के अनुरूप डॉक्टर मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया |
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प्रतिष्ठित अमेरिकी पत्रिका ‘फोर्ब्स’ द्वारा मार्च 2011 में जारी विश्व की सबसे शक्तिशाली 100 व्यक्तियों की सूची में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को नौवां स्थान दिया गया है | लगातार 12 वर्षों तक कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर बने रहने के बाद वे सितंबर 2010 में लगातार चौथी बार इस पद के अगले कार्यकाल के लिए निर्वाचित हुईं | कांग्रेस में लगातार 12 वर्षों तक अध्यक्ष पद पर बने रहने वाली लगातार चौथी बार इस पद हेतु निर्वाचित होने वाली वे प्रथम महिला हैं | इस समय वे यू.पी.ए गठबंधन एंव कांग्रेस दोनों की प्रमुख हैं तथा उन्हें भारत ही नहीं विश्व भर में महिला सशक्तिकरण के प्रतीक रूप में देखा जाता है | अपने जीवन के उत्थान-पतन का पूरे साहस एंव धैर्य के साथ सामना करते हुए जिस तरह उन्होंने भारतीय राजनीति में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान सुनिश्चित किया है वह भारत ही नहीं पूरे विश्व की नारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है |