
Sir Chandrashekhar Venkat (CV) Raman Short Biography In Hindi Language चन्द्रशेखर वेंकट रमन की जीवनी
नाम: सर चन्द्रशेखर वेंकट रमन (सर सी० वी० रमन)
जन्म: 7 नवम्बर 1888 ई०
जन्म स्थान: तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु
राष्ट्रीयता: भारतीय
क्षेत्र: भौतिक शास्त्र
संस्थाए: भारतीय वित्त विभाग, भारतीय विज्ञान संस्थान, इण्डियन एसोसिएशन फॉर कल्टीवेशन ऑफ साइंस
मातृ संस्था: प्रेसीडेंसी कॉलेज
प्रसिद्ध कार्य: Raman Effect
पुरस्कार: नाइट बैचेलर (1929), भौतिकी में नोबेल पुरस्कार (1930), भारत रत्न (1954), लेनिन शांति पुरस्कार (1957)
मृत्यु: 21 नवंबर 1970
मृत्यु स्थान: बंगलुरू, कर्नाटक
हमारे देश में कई वर्षों से ‘28 फरवरी’ ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है | क्योंकि इस दिन सन 1928 में सर सी० वी० रमन ने सस्ते सरल उपकरणों का प्रयोग करके एक महत्वपूर्ण खोज की | इस खोज को रमन इफेक्ट के नाम से जाना जाता है | इस महत्वपूर्ण खोज के लिए रमन को अन्तर्राष्ट्रीय नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया | यह सम्मान विश्व के वैज्ञानिक के लिए नहीं अपितु संपूर्ण भारत के लिए गर्व की बात है |
चन्द्रशेखर वेंकट रमन का जीवन परिचय CV Raman Ka Jeevan Parichay in Hindi
चन्द्रशेखर वेंकट रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 ई० में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नामक स्थान में हुआ था | इनके पिता चन्द्रशेखर अय्यर एस०पी०जी० कॉलेज में भौतिकी के प्राध्यापक थे | इनकी माता पार्वती अम्मल एक सुसंस्कृत परिवार की महिला थी | सन 1892 ई० में इनके पिता चन्द्रशेखर अय्यर विशाखापट्टनम के श्रीमती ए० बी० एन० कॉलेज में भौतिकी और गणित के प्राध्यापक होकर चले गए | उस समय रमन जी चार वर्ष के थे, इनकी प्रारंभिक शिक्षा विशाखापट्टनम में ही हुई | ये जिस विद्यालय में पढ़ते थे वह समुद्र के किनारे स्थित था | उन्हें अपनी कक्षा की खिड़की से समुद्र दिखाई देता था वह समुद्र के जल को नीला देखकर प्रायः कल्पना में लीन हो जाते थे | बाद में समुद्र के पानी का यही नीलापन इनकी वैज्ञानिक खोज का कारण बना | रमन की पूरी पढ़ाई अपने देश में ही हुई | इन्होंने 12 वर्ष की अवस्था में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी | इन्होंने सन 1903 ई० में चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश ले लिया | ये बी० ए० की परीक्षा में अकेले ही प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए | ये अपनी पढ़ाई पूरी करने के पश्चात रमन में लेखा विभाग की परीक्षा उत्तीर्ण की | इनकी नियुक्ति कोलकाता में डिप्टी अकाउंटेंट जनरल के पद पर हुई | शीघ्र ही इस पद से त्याग पत्र देकर रमन कोलकाता विश्वविद्यालय में भौतिकी शास्त्र के प्राध्यापक पद पर कार्य करने लगे |
एक बार ये कलकत्ता के परिषद कार्यालय में पहुंच गये वहां पहुंच कर इन्होंने अपना परिचय दिया और परिषद की प्रयोगशाला में प्रयोग करने की आज्ञा पा ली | तत्पश्चात इनका तबादला रंगून और फिर नागपुर हो गया | अब इन्होंने घर में ही प्रयोगशाला बना ली | जब ये लंदन से स्वदेश जलयान द्वारालौट रहे थे तब इन्होंने भूमध्यसागर के जल को नीले रंग का देखा तो उनकी पुरानी सोच पुनः जीवित हो उठी | तो स्वदेश आकर उस पर खोज शुरू कर दिया और इस नतीजे पर पहुंचे कि सभी वस्तुएं हमें जिस रंग की दिखाई देती हैं वे सूर्य से आने वाले प्रकाश की किरणों से उस रंग की किरण को परावर्तित कर देती हैं | जिससे हमें वस्तु उस किरण के रंग की दिखाई पड़ती है | रमन की इस खोज को ही रमन इफेक्ट (Raman Effect) कहते हैं | अपने इस प्रभाव को सिद्ध करने के लिए इन्होंने स्पेक्ट्रो स्कोप बनाया और उसमें से इन्होंने प्रकाश की किरणों को गुजारा और अपने इस खोज की घोषणा 29 फरवरी 1928 को की |
सर सी० वी० रमन की मृत्यु 21 नवंबर 1990 ई० को बंगलुरु कर्नाटक को हुई |
सर सीवी रमन 1924 ई० में अनुसंधानो के लिए रॉयल सोसायटी लंदन के फैलो बनाए गये | रमन प्रभाव के लिए इनको 1930 ई० में नोबल पुरस्कार दिया गया |
1948 ई० में सेवानिवृत्ति के बाद इन्होंने ‘रमन शोध संस्थान’ की बंगलुरु में स्थापना की और इसी संस्थान में शोधरत रहे | 1954 ई० में भारत सरकार ने इन्हें भारत रत्न से नवाजा |
“विज्ञान का सार उपकरण नहीं बल्कि स्वतंत्र सोच, विचार और परिश्रम है |” – ‘सर सी० वी० रमन’
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