सीतामढ़ी का जानकी मन्दिर Sitamarhi Janki Mandir History in Hindi

सीतामढ़ी जानकी मन्दिर Sitamarhi Janki Mandir History in Hindi

वाराणसी से 80 कि. मी. दूर ग्रामीण इलाके में गंगा के तट पर सीतामढ़ी नामक स्थान है | यह वही स्थान है जहां महर्षि वाल्मीकि ने क्रूर बहेलिये के बाणों से आहत काम मोहित क्रौंच पक्षी की देखा था और उनके मुंह से सहसा ‘मा निषाद प्रतिष्ठामू’ श्लोक निकल पड़ा । सीतामढ़ी वही स्थान है, जहां राम निर्वासित कर दिए जाने पर सीता ने वास किया था।

यहीं पर सीता जी ने लव-कुश को जन्म दिया था। सीतामढ़ी में आज भी कुछ प्राचीन अवशेष हैं, जैसे वाल्मीकि की यज्ञशाला, कुआं, कुटिया आदि। एक स्थान पर संकेत किया गया है कि इसी जगह सीता जी पृथ्वी में समा गई थीं।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस स्थान की वाल्मीकि आश्रम के रूप में स्वीकार किया है और इस स्थान की सीमाओं का उल्लेख अपने ग्रंथों में किया है। तुलसीदास जी प्रयाग से गंगा किनारे काशी जाते समय इस स्थान पर आए और उन्होंने 3 दिन तक यहां निवास किया। यहां के वटवृक्ष देखकर वे भाव-विभोर हो गए और उन्हें पूर्व जन्म की घटनाएं याद हो आई।

किंवदन्ती के अनुसार तुलसीदास पूर्व जन्म में वाल्मीकि थे। तुलसीदास जी ने यहां अपने ज्ञान चक्षुओं के द्वारा लव-कुश के दर्शन किए। स्वप्न में उनको यहां सीताजी ने दर्शन दिए। कहा जाता है कि यहीं पर हनुमान जी वाल्मीकि के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने तुलसीदास की जनभाषा में रामकथा लिखने का आदेश दिया। सीतामढ़ी में ही तुलसीदास जी को रामचरित मानस लिखने की प्रेरणा मिली।

आज भी यहां एक प्राचीन वटवृक्ष है जिसे कहा जाता है कि सीता माता ने लगाया था। यहीं सीता जी पृथ्वी में समा गयी थीं और रामचंद्रजी को केवल उनके केश मिले थे। इस स्थान पर एक विशेष प्रकार की कोमल घास होती है जिसे लोग सीता माता के केश कहते हैं। श्रद्धालु सीता माता की यहां वैदेही के रूप में पूजा करते हैं।