
Vilayati Palak (Spinach) Ki Kheti Kaise Kare – विलायती पालक की खेती कैसे करें
यह फसल भी पत्तियों वाली हरी सब्जी की एक मुख्य फसल है जिसका प्रयोग हमारे देश में विस्तार रूप से किया जाता है । पालक की खेती अधिकतर शहरी क्षेत्रों व कस्बों के आसपास की जाती है जिसका कारण सब्जी-मण्डी करीब पड़ती है और ताजा पालक सभी उपभोक्ताओं तक पहुंचता रहता है । पालक व विलायती पालक दोनों की खेती एक समय में ही की जाती है ।
विलायती पालक स्वास्थ्य के लिए एक मुख्य फसल है जिसको कच्चा भी खाया जाता है । स्वास्थ्य के लिए पोषक-तत्वों की पूर्ति करता है । इसमें अधिकतर प्रोटीन, लोहा, आक्जैलिक-एसिड, कैल्शियम, थाइमीन, रिवोफ्लोविन पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं तथा विटामिनस ‘ए’ ‘सी’ का मुख्य स्रोत समझा जाता है । इसकी पत्तियों को हरी सब्जी के रूप में तथा भूजी व आलुओं के साथ मिलाकर खाया जाता है ।
विलायती पालक की खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु (Soil and Climate for Vilayati Palak Kheti)
विलायती पालक ठन्डे मौसम की मुख्य फसल है जोकि कम तापमान पर वृद्धि करती है । अधिक तापमान में अच्छी वृद्धि नहीं होती है । इसलिए अच्छी वृद्धि के लिए 15-20 डी०से० ग्रेड तापमान उपयुक्त होता है । विलायती पालक के लिए रात का कम तापमान भी उचित होता है । पाले आदि का फसल पर नुकसान नहीं होता है । देर से बोने वाली फसल को नमी की मात्रा की अधिक आवश्यकता पड़ती है ।
विलायती पालक की खेती के लिए खेत की तैयारी (Vilayati Palak Ki Kheti Ke Liye Khet Ki Taiyari)
विलायती पालक के लिए उर्वरा शक्ति वाली बलुई दोमट भूमि की आवश्यकता होती है । भूमि का जल-निकास का विशेष प्रबन्ध होना चाहिए । फसल की अम्लीय एवं क्षारक्षीय भूमि में पैदावार नहीं की जाती । भूमि का पी. एच. मान 6.0-7.0 के बीच में रहना चाहिए । इसके बीच वाली भूमि में अधिक पैदावार होती है ।
विलायती पालक के लिए 3-4 बार मिट्टी पलटने वाले हल से या ट्रैक्टर द्वारा जुताई करनी चाहिए तथा बाद में सूखी घास की गुड़ाई करके खेत से बाहर निकाल देना चाहिए । गुड़ाई के बाद 1-2 जुताई देशी हल या ट्रिलर द्वारा करनी चाहिए । देशी खाद आदि को बुवाई से पहले मिला देना चाहिए तथा क्यारियां बनाकर मेड-बन्दी करके तैयार कर लेना चाहिए । खेत में सिंचाई करके पलेवा कर देना चाहिए जिससे नमी बनी रहे ।
बगीचों के लिए खेत की गहरी जुताई या खुदाई करके खेत को तैयार कर लेना चाहिए तथा खाद डालकर मिट्टी भुरभुरी हो जानी चाहिए । क्यारियां बनाकर हल्का पानी लगाना चाहिए ताकि नमी बनी रहे । गमलों के लिये पालक की तरह तैयार करना चाहिए तथा बड़े गमले में 4,5 बीज लगाना चाहिए ।
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खाद एवं रासायनिक खाद की मात्रा का प्रयोग (Use of Manure and Festilizers)
विलायती पालक के लिए खाद युक्त वाली भूमि चाहिए । गोबर की सड़ी खाद में 20 ट्रैक्टर ट्रौली प्रति हेक्टर तथा रासायनिक खाद में नत्रजन 25 किलो तथा 80-100 किलो डी.ए.पी. प्रति हेक्टर की दर से खाद की मात्रा पर्याप्त होती है । डाई अमोनियम सल्फेट की मात्रा को बुवाई से पहले खेत में मिला देते हैं तथा नत्रजन को प्रत्येक कटाई के बाद छिड़कना चाहिए । यूरिया को 5-6 भागों में बांट कर छिड़कना चाहिए जिससे वृद्धि सही समय पर होती है ।
बगीचे में विलायती पालक को पालक की तरह उगाते हैं । गोबर की खाद 4-5 टोकरी, 500 ग्रा० डी.ए.पी. बुवाई से पहले भूमि में मिलाना चाहिए तथा यूरिया 100 ग्रा० कटाई के बाद छिड़कना लाभकारी सिद्ध होता है । गमलों में भी कटाई के बाद 2-3 चाय चम्मच यूरिया देना चाहिए ।
विलायती पालक की उन्नतशील जातियां (Improved Varieties of Spinach)
विलायती पालक की दो मुख्य जातियां विकसित है जो कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा की गई हैं जिन्हें बोने की सिफारिश की जाती है ।
1. विजीनिया सवोय (Viginia Savoy)- यह किस्म अधिक उपज देने वाली है । इसकी पत्तियां मोटी, रंग गहरा हरा तथा पत्तियों का ऊपरी सिरा कुछ गोल-सा होता है ।
2. अर्ली स्मूथ लीफ (Early Smooth Leaf)- इस जाति के पौधों की पत्तियां कुछ पतली, हल्की हरी पीलापन लिये होती हैं । पत्तियां चिकनी तथा कुछ नुकीली चोटीदार होती हैं ।
इनके अतिरिक्त और भी जातियां है जिनको लगाया जा सकता है ।
बुवाई का समय, ढंग एवं दूरी (Method of Sowing Time and Distance)
बुवाई छिटकवां तथा कतारों में की जाती है । कतारों में बोने की सिफारिश की जाती है । इस विधि से निकाई गुड़ाई तथा कटाई में सुविधा रहती है । कतारों की दूरी 25 सेमी० तथा पौधे से पौधे की दूरी 8-10 सेमी० रखनी चाहिए । बीज छोटा व हल्का होने के कारण 1-2 सेमी० गहरा बोना चाहिए । नमी की कमी होने पर हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए ।
बीज की मात्रा (Seeds Rate)
विलायती पालक के बीज की मात्रा 45-50 किलो प्रति हेक्टर की दर से आवश्यकता है । बीज से अंकुरण अच्छा होना चाहिए । अर्थात् अंकुरण प्रतिशत अधिक है । छिटकने वाली विधि में बीज अधिक प्रयोग किया जाता है । बगीचे के लिए 40-50 ग्रा० बीज पर्याप्त होता है ।
सिंचाई एवं निकाई-गुड़ाई (Irrigation and Hoeing)
विलायती पालक की सिंचाई का विशेष महत्त्व है । क्योंकि कम नमी में उपज कम होती है तथा जायद में बोई जाने वाली फसल के लिये अधिक पानी की आवश्यकता होती है । जाड़ों में 10 दिन के अन्तर से तथा जायद की फसल में 8-10 दिन के बाद पानी देते रहना चाहिए । बगीचों व गमलों में हमेशा पर्याप्त नमी बनी रहनी चाहिए । जाड़ों में 3-4 दिन के बाद तथा गर्मी की फसल में दूसरे दिन पानी देना चाहिए तथा गमलों में ये रोज शाम को देना अति आवश्यक है ।
शुरू में सिंचाई के बाद खरपतवार होने पर निकाई-गुड़ाई के समय बाहर उखाड़ कर फेंक देना चाहिए तथा पौधों की दूरी समान कर देना चाहिए । पालक की फसल में जैसे-बथुआ, मौथा आदि खरपतवार अधिक होते रहते हैं ।
विलायती पालक की कटाई (Harvesting)- विलायती पालक की 3-4 कटाईयां की जाती हैं लेकिन पानी, खाद की अच्छी व्यवस्था होने पर अधिक कटाई भी मिलती रहती है । कटाई बुवाई से 30-40 दिनों के अन्दर आरम्भ हो जाती है । प्रत्येक कटाई के बाद यूरिया की मात्रा देने से फसल शीघ्र बढ़ती रहती है । इस प्रकार से 8-10 दिनों के अन्तराल से कटाई करते रहना चाहिए । पालक को ताजा काट कर साथ-साथ बण्डल बना लेने चाहिए जिससे बाजार भेजने में सुविधा रहे । 20-25 सेमी० लम्बी शाखाओं को काटते रहना चाहिए ।
उपज (Yield)
विलायती पालक की पैदावार सही देखभाल करने पर 20-25 टन पैदावार पत्तियों की हो जाती है । यह उपज निर्भर करती है कि कौन-सी जाति, समय पर बोई गयी है ।
बगीचों में बोई गई फसल से भी 20 किलो 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र में पत्तियां प्राप्त हो जाती है । बगीचे में पत्तियों को जल्दी काटना चाहिए ताकि पत्तियां मुलायम बनी रहें । कटाई के समय जमीन की सतह से ऊंचा काटना चाहिए ।
रोग व नियन्त्रण (Diseases Control)
विलायती पालक के रोग भी पालक की फसल जैसे होते हैं तथा बचाव भी उसी प्रकार करना चाहिए ।
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कीट पतंगे एवं बचाव (Insect Control)
कीट अधिकतर कैटरपिलर, ग्रासहोपर, बीटिल आदि कीट क्षति पहुंचाते हैं । बीटिल के लारवे पौधों की जड़ों को नुकसान तथा बाद में पत्तियों को क्षति पहुंचाते हैं । कैटरपिलर अधिकतर पत्तियों को खाता है और अपना भोजन बनाता है । इसी प्रकार से ग्रासहोपर अधिक खड़ी फसल को क्षति पहुंचाता है । इस कीट का रंग हरा होता है जो कि पत्तियों में छिप जाता है । शुरू में नियन्त्रण न होने पर इनकी संख्या बढ्कर फसल को बहुत क्षति पहुंचाते हैं ।
बचाव (Control)- इन कीटों के लिए सही बचाव है कि फसल में खरपतवार न होने दें । कीटनाशक दवाओं का प्रयोग-पत्तियों वाली फसल पर न करें तो अच्छा होगा । क्योंकि दवाएं बहुत ही अधिक जहरीली होती हैं जिससे उपभोक्ताओं पर भी प्रभाव पड़ता है । सावधानीपूर्वक अधिक आक्रमण पर 0.1 प्रतिशत BHC का छिड़काव किया जा सकता है ।
ध्यान रहे कि छिड़काव के बाद 10 दिन तक पत्तियों को प्रयोग में न लायें । बाद में भी अच्छी तरह से धोकर प्रयोग करें अन्यथा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है ।
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