
यमुनोत्री धाम मन्दिर की यात्रा और कहानी Yamunotri Dham Mandir History In Hindi Language
समुद्रतल से 10 हजार फुट की ऊचाई पर उत्तर प्रदेश के गढ़वाल मंडल की हिमालय श्रृंखलाओं में स्थित, यमुनोत्री हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ है। यहीं सप्तऋषि कुंड नामक सरोवर से यमुना नदी निकलती है।
यमुनोत्री के साथ असित ऋषि की कथा जुड़ी हुई है। अत्यधिक वृद्धावस्था के कारण ऋषि जब सप्त ऋषि कुंड में स्नान करने के लिए नहीं जा सके तो उनकी अपार श्रद्धा देखकर यमुना उनकी कुटिया से ही प्रकट हो गई। यही स्थान अब यमुनोत्री कहलाता है। कलिंद पर्वत से निकलने के कारण इसे कालिंदी भी कहते हैं। यमुनोत्री में गर्म पानी के अनेक कुंड हैं, जिनमें कपड़े में बांधकर चावल, आलू वगैरह थोड़ी देर डालने पर वह पक जाते हैं। इसी को यमुनोत्री का प्रसाद मानकर श्रद्धालु स्वीकार करते हैं।
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मई-जून के महीनों में यहां यात्रियों की काफी भीड़ रहती है। एक तरफ यमुना की शीतल धारा बहती है, दूसरी तरफ गरम जल के कुंड हैं। यहां परशुराम, काली और एकादश रुद्र आदि के मदिर हैं। ऋषिकेश से 2 कि.मी. दूरी पर मुनि की रेती नामक स्थान है। यहां से एक मार्ग गंगोत्री-यमुनोत्री के लिए जाता है और दूसरा बदरीनाथ-केदारनाथ के लिए।
टिहरी से तीन मुख्य मार्ग निकलते हैं। पहला- देवप्रयाग को, दूसरा- उत्तरकाशी को और तीसरा श्रीनगर की। टिहरी से 37 कि.मी. पर धरासु है। धरासु से एक मार्ग उत्तरकाशी होते हुए गंगोत्री के लिए जाता है। दूसरा मोटर मार्ग हनुमान चट्टी तक गया है। यहीं से यमुनोत्री की जाते हैं। धरासु से 24 कि.मी. पर स्यानचट्टी नामक गांव पड़ता है। यह गांव घने जंगलों के बीच स्थित है। स्यानचट्टी से आगे 5 कि.मी. पर हनुमान चट्टी है। मोटर मार्ग हनुमान चट्टी पर ही समाप्त हो जाता है। सात कि.मी. की पैदल यात्रा के बाद जमनाबाई कुंड है, जहां स्नान करने का विशेष धार्मिक महत्व है। यमुनोत्री जमनाबाई कुंड से 6 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।